प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है। प्राणायाम = प्राण + आयाम। इसका का शाब्दिक अर्थ है - 'प्राण (श्वसन) को लम्बा करना' या 'प्राण (जीवनीशक्ति) को लम्बा करना'। (प्राणायाम का अर्थ 'स्वास को नियंत्रित करना' या कम करना नहीं है।) हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है-
चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्
योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्॥२॥
(अर्थात प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों का नियंत्रण करना चाहिये।
यह भी कहा गया है-
यावद्वायुः स्थितो देहे तावज्जीवनमुच्यते ।
मरणं तस्य निष्क्रान्तिः ततो वायुं निरोधयेत् ॥
( जब तक शरीर में वायु है तब तक जीवन है। वायु का निष्क्रमण (निकलना) ही मरण है। अतः वायु का निरोध करना चाहिये।)
प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है- (प्राण+आयाम) पहला शब्द "प्राण" है दूसरा "आयाम"। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है। आयाम का अर्थ जानने के लिये इसका संधि विच्छेद करना होगा क्योंकि यह दो शब्दों के योग (आ+याम) से बना है। इसमें मूल शब्द '"याम" ' है 'आ' उपसर्ग लगा है। याम का अर्थ 'गमन होता है और '"आ" ' उपसर्ग 'उलटा ' के अर्थ में प्रयोग किया गया है अर्थात आयाम का अर्थ उलटा गमन होता है। अतः प्राणायाम में आयाम को 'उलटा गमन के अर्थ में प्रयोग किया गया है। इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ 'प्राण का उलटा गमन होता है। यहाँ यह ध्यान देने कि बात है कि प्राणायाम प्राण के उलटा गमन के विशेष क्रिया की संज्ञा है न कि उसका परिणाम। अर्थात प्राणायाम शब्द से प्राण के विशेष क्रिया का बोध होना चाहिये।
प्राणायाम के बारे में बहुत से ऋषियों ने अपने-अपने ढंग से कहा है लेकिन सभी के भाव एक ही है जैसे पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र एवं गीता में जिसमें पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र महत्वपूर्ण माना जाता है जो इस प्रकार है- तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा- श्वास प्रश्वास के गति को अलग करना प्राणायाम है। इस सूत्र के अनुसार प्राणायाम करने के लिये सबसे पहले सूत्र की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये लेकिन पतंजलि के प्राणायाम सूत्र की व्याख्या करने से पहले हमे इस बात का ध्यान देना चाहिये कि पतंजलि ने योग की क्रियाओं एवं उपायें को योगसूत्र नामक पुस्तक में सूत्र रूप से संकलित किया है और सूत्र का अर्थ ही होता है -एक निश्चित नियम जो गणितीय एवं विज्ञान सम्मत हो। यदि सूत्र की सही व्याख्या नहीं हुई तो उत्तर सत्य से दूर एवं परिणाम शून्य होगा। यदि पतंजलि के प्राणायाम सूत्र के अनुसार प्राणायाम करना है तो सबसे पहले उनके प्राणायाम सूत्र तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये जो शास्त्रानुसार, विज्ञान सम्मत, तार्किक, एवं गणितीय हो। इसी व्याख्या के अनुसार क्रिया करना होगा। इसके लिये सूत्र में प्रयुक्त शब्दों का अर्थबोध होना चाहिये तथा उसमें दी गयी गति विच्छेद की विशेष युक्ति को जानना होगा। इसके लिये पतंजलि के प्राणायाम सूत्र मे प्रयुक्त शब्दो का अर्थ बोध होना चाहिये।
प्राणायाम प्राण अर्थात् साँस आयाम याने दो साँसो मे दूरी बढ़ाना, श्वास और नि:श्वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को कहा जाता है।
श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। हम साँस लेते है तो सिर्फ़ हवा नही खीचते तो उसके साथ ब्रह्मान्ड की सारी उर्जा को उसमे खींचते है। अब आपको लगेगा की सिर्फ़ साँस खीचने से ऐसा कैसा होगा। हम जो साँस फेफडो मे खीचते है, वो सिर्फ़ साँस नही रहती उसमे सारे ब्रम्हन्ड की सारी उर्जा समायी रहती है। मान लो जो साँस आपके पूरे शरीर को चलाना जनती है, वो आपके शरीर को दुरुस्त करने की भी ताकत रखती है। प्राणायाम निम्न मंत्र (गायत्री महामंत्र) के उच्चारण के साथ किया जाना चाहिये।
प्राणायाम का योग में बहुत महत्व है।
1) सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास, सत्यभावना, दृढ़ता।
2) प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
3) बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।
4) बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियाँ एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
5) सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
6) प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
7) प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
8) प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
9) ह्र साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
10) जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
11) यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे धीरे अभ्यास करें।
12) हर साँस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप करने से आपको आध्यात्मिक एवं शारीरिक लाभ मिलेगा और प्राणायाम का लाभ दुगुना होगा।
13) साँसे लेते समय किसी एक चक्र पर ध्यान केंन्द्रित होना चाहिये नहीं तो मन कहीं भटक जायेगा, क्योंकि मन बहुत चंचल होता है।
14) साँसे लेते समय मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी है कि "हमारे शरीर के सारे रोग शरीर से बाहर निकाल दें और हमारे शरीर में सारे ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा, ओज, तेजस्विता हमारे शरीर में डाल दें"।
15) ऐसा नहीं है कि केवल बीमार लोगों को ही प्राणायाम करना चाहिए, यदि बीमार नहीं भी हैं तो सदा निरोगी रहने की प्रार्थना के साथ प्राणायाम करें।
भस्त्रिका प्राणायाम
सुखासन सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। नाक से लंबी साँस फेफडो मे ही भरे, फिर लंबी साँस फेफडो से ही छोडें| साँस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे। हमें हमारी गलतीयाँ सुधारनी है, एक तो हम पुरी साँस नही लेते; और दुसरा हमारी साँस पेट में चाली जाती है। देखिये हमारे शरीर में दो रास्ते है, एक (नाक, श्वसन नलिका, फेफडे) और दूसरा (मुँह्, अन्ननलिका, पेट्)| जैसे फेफडोमें हवा शुद्ध करने की प्रणली है, वैसे पेट में नही है। उसीके कारण हमारे शरीर में आँक्सीजन की कमी मेहसूस होती है। और उसेके कारण हमारे शरीर में रोग जडते है। उसी गलती को हमें सुधारना है। जैसे की कुछ पाने की खुशि होति है, वैसे हि खुशि हमे प्राणायाम करते समय होनि चाहिये। और क्यो न हो सारि जिन्दगि का स्वास्थ आपको मील रहा है। आप के पन्चविध प्राण सशक्त हो रहे है, हमारे शरीर की सभि प्रणालिया सशक्त हो रही है।
लाभ
हमारा हृदय सशक्त बनाने के लिये है।
हमारे फेफडों को सशक्त बनाने के लिये है।
मस्तिष्क से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये भी यह लाभदायक है।
पार्किनसन, पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये।
भगवान से नाता जोडने के लिये।
कपालभाति प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और साँस को बाहर फेंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इस में सिर्फ् साँस को छोडते रहना है। दो साँसो के बीच अपने आप साँस अन्दर चली जायेगी जान-बूझ कर साँस को अन्दर नहीं लेना है। कपाल कहते है मस्तिष्क के अग्र भाग को, भाती कहते है ज्योति को, कान्ति को, तेज को; कपालभाति प्राणायाम करने लगातार करने से चहरे का लावण्य बढाता है। कपालभाति प्राणायाम धरती की सन्जीवनि कहलाता है। कपालभाती प्राणायाम करते समय मुलाधार चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना है। इससे मूलाधार चक्र जाग्रत हो के कुन्डलिनी शक्ति जाग्रत होने में मदद होती है। कपालभाति प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है कि, हमारे शरीर के सारे नगेटिव तत्व शरीर से बाहर जा रहे है। खाना मिले ना मिले मगर रोज कम से कम ५ मिनिट कपालभाति प्राणायाम करना ही है, यह द्रिढ संक्लप करना है।
लाभ
बालो की सारी समस्याओँ का समाधान प्राप्त होता है।
चेहरे की झुरियाँ, आँखो के नीचे के डार्क सर्कल मिट जायेंगे|
थायराँइड की समस्या मिट जाती है।
सभी प्रकार की चर्म समस्या मिट जाती है।
आखों की सभी प्रकार की समस्याऐं मिट जाती है, और आँखो की रोशनी लौट आती है।
दातों की सभी प्रकार की समस्याऐं मिट जाती है और दातों की खतरनाक पायरिया जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है।
कपालभाति प्राणायाम से शरीर की बढ़ी चर्बी घटती है, यह इस प्राणायाम का सबसे बडा फायदा है।
कब्ज, ऐसिडिटी, गैस्टि्क जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं।
यूटरस (महिलाओं) की सभी समस्याओँ का समाधान होता है।
डायबिटीस संपूर्णतया ठीक होता है।
कोलेस्ट्रोल को घटाने में भी सहायक है।
सभी प्रकार की ऐलर्जियाँ मिट जाती हैं।
सबसे खतरनाक कँन्सर रोग तक ठीक हो जाता है।
शरीर में स्वतः हीमोग्लोबिन तैयार होता है।
शरीर मे स्वतः कैलशियम तैयार होता है।
किडनी स्वतः स्वच्छ होती है, डायलेसिस करने की जरुरत नहीं पड़ती|
बाह्य प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। साँस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद साँस बाहर ही रोके रखने के बाद तीन बन्ध लगाते है।
१) जालंधर बन्ध :- गले को पूरा सिकोड कर ठोडी को छाती से सटा कर रखना है।
२) उड़ड्यान बन्ध :- पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है।
३) मूल बन्ध :- हमारी मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है।
लाभ्
कब्ज, ऐसिडिटी, गँसस्टीक, जैसी पेट की सभी समस्याएें मिट जाती हैं।
हर्निया पूरी तरह ठीक हो जाता है।
धातु, और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिट जाती हैं।
मन की एकाग्रता बढ़ती है।
व्यंधत्व (संतान हीनता) से छुटकारा मिलने में भी सहायक है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टिरल) से ही करनी है, नाक का दाँया नथुना बंद करें व बाये से लंबी साँस लें, फिर बाये को बंद करके, दाँया वाले से लंबी साँस छोडें...अब दाँये से लंबी साँस लें और बाये वाले से छोडें...यानि यह दाँया-दाँया बाँया-बाँया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| साँस लेते समय अपना ध्यान दोंनों आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए। और मन ही मन मे साँस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए। हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सूक्ष्म नाड़ी शुद्ध हो जाती है। बायी नाड़ी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और बायी नाडी को सुर्य (पीन्गला, यमुना) नाड़ी कहते है। चन्द्र नाडी से ठण्डी हवा अन्दर जती है और सूर्य नाड़ी से गरम नाड़ी हवा अन्दर जाती है। ठण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है। इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ जाती है।
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुआत और अन्त भी हमेशा बायें नथुने (नोस्टिरल) से ही करनी है, नाक का दाँया नथुना बंद करें व बायें से लंबी साँस लें, फिर बायें को बंद करके, दाँया वाले से लंबी साँस छोडें...अब दाँये से लंबी साँस लें व बाये वाले से छोडें...यानि यह दाँया-दाँया बाँया-बाँया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए। और मन ही मन मे साँस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए। हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सूक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है। बायी नाड़ी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और दायी नाडी को सुर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है। चन्द्र नाड़ी से ठण्डी हवा अन्दर जाती है और सूर्य नाड़ी से गरम नाड़ी हवा अन्दर जाती है। ठण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रहता है। इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ जाती है।
लाभ
हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सूक्ष्म नाड़ी शुद्ध हो जाती है।
हार्ट की ब्लाँकेज खुल जाते है।
हाई, लो दोंनों रक्त चाप ठीक हो जायेंगे|
आर्थराटिस, रोमेटोर आर्थराटिस, कार्टीलेज घिसना जैसी बीमारियाँ ठीक हो जाती है।
टेढे लिगामेंटस सीधे हो जायेंगे|
वैरीकोस वैन्स ठीक हो जाती है।
कोलेस्टाँल, टाँक्सीन्स, आँस्कीडैन्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है।
सायकीक पेंशेन्ट्स को फायदा होता है।
किडनी नैचुरली स्वच्छ होती है, डायलेसिस करने की जरुरत नही पड़ती|
सबसे बड़ा खतरनाक कैन्सर तक ठीक हो जाता है।
सभी प्रकार की ऐलर्जीयाँ मिट जाती है।
मेमरी बढाने की लिये।
सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है।
ब्रेन ट्यूमर भी ठीक हो जाता है।
सभी प्रकार के चर्म समस्या मिट जाती है।
मस्तिषक के सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
पार्किनसन्स, पैरालेसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओ से सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
सायनस की व्याधि मिट जाती है।
डायबीटीस पूरी तरह मिट जाती है।
टाँन्सिल्स की व्याधि मिट जाती है।
भ्रामरी प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। दोनो अंगूठों से कान पूरी तरह बन्द करके, दो उंगलिओं को माथे पर रख कर, छः उंगलियों को दोनो आँखो पर रख दे। और लंबी साँस लेते हुए कण्ठ से भवरें जैसा (म……) आवाज निकालना है।
सायकीक पेंशेट्स को फायदा होता है।
मायग्रेन पेन, डीप्रेशन, और मस्तिष्क से सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
मन और मस्तिषक की शांति मिलती है।
ब्रम्हानंद की प्राप्ति करने के लिये।
मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये।
महोदय, मैने पिछले पांच वर्षो के निरंतर अभ्यास के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि :- अनुलोम विलोम प्राणायाम में साँस लेने की शुरुआत यदि दायीं नासिका से करते हुए अंत में दाई नासिका से साँस छोड़ा जाये तो मन में क्रोध तथा चिडचिडापन रहता है! तथा इसके विपरीत यदि साँस लेने की शुरुआत बायीं नासिका से करते हुए अंत में बायीं नासिका से ही साँस छोड़ा जाता है तो मन शांत रहता है !
उद्गीथ प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और लंबी सास लेके मुँह से ओउम का जाप करना है।
लाभ
पॉजिटिव एनर्जी तैयार करता है।
सायकीक पेंशेट्स को फायदा होता है।
मायग्रेन पेन, डिप्रेशन, ऑर मस्तिष्क के सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
मन और मस्तिष्क की शांति मिलती है।
ब्रम्हानंद की प्राप्ति करने के लिये।
मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढाने के लिये।
प्रणव प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और मन ही मन मे एकदम शान्त बैठ कर लंबी साँस लेते हुए ओउम का जाप करना है।
लाभ
पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है।
सायकीक पैशान्ट्स को फायदा होता है।
मायग्रेन पेन, डिप्रेशन और मस्तिषक के सम्बधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये।
मन और मस्तिष्क की शांति मिलती है।
ब्रम्हानंद की प्राप्ति करने के लिये।
मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढाने के लिये।
अग्निसार क्रिया
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। यह क्रिया मे कपालभाती प्राणायाम जैसा नही है बार बार साँस बाहर नही करनी है। सास को पुरी तरह बाहर नीकल के बाद बाहर ही रोक के पेट को आगे पीछे करना है।
लाभ
कब्ज, ऐसिडिटी, गँसस्टीक, जैसी पेट की सभी समस्याऐं मिट जाती हैं।
हर्निया पूरी तरह मिट जाता है।
धातु, और पेशाब के संबंधित सभी समस्याऐं मिट जाती हैं।
मन की एकाग्रता बढ़ेगी|
व्यंधत्व से छुटकारा मिल जायेगा|
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। सीकुडे हुवे गले से सास को अन्दर लेना है।
लाभ
थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है।
तुतलाना, हकलाना, ये शिकायत भी दूर होती है।
अनिद्रा, मानसिक तनाव भी कम करता है।
टी•बी•(क्षय) को मिटाने मे मदद होती है।
गुंगे बच्चे भी बोलने लगेंगे|
सीत्कारी प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। जिव्हा तालू को लगाके दोनो जबड़े बन्द करके लेना और उस छोटी सी जगह से सीऽऽ सीऽऽ करत॓ हुए हवा को अन्दर खीचना है। और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे। जैसे ए• सी• के फिन्स होते है, उससे ए• सी• के काँम्प्रेसर पर कम दबाव आता है और गरम हवा बाहर फेकने से हमारी कक्षा की हवा ठंडी हो जाती है। वैसे ही हमे हमारे शरीर की अतिरिक्त गर्मी कम कर सकते है।
लाभ
शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये।
ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मीलता है।
पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये।
शरीर पर कही़ं भी आयी हुई फोड़ी को मिटाने की लिये।
शितली प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जीव्हा को बाहर निकालना, हमरी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है। और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे।
लाभ
शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये।
ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है।
पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये।
शरीर पर कहीं भी आई हुई फोड़ी को मिटाने की लिये।
सूय॔भेदी प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जिव्हा को बाहर निकालना, हमारी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है। और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे। लाभ
* शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये।
* ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मीलता है।
* पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये।
* शरीर पर कहा भी आयी हुई फोड़ी को मिटाने की लिये।
चंदभेदी प्राणायाम
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जीव्हा को बाहर निकालना, हमरी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है। और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे। लाभ
* शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये।
* ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है।
* पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये।
* शरीर पर कहा भी आई हुई फोड़ी को मिटाने की लीये|
राणायाम, प्राण और आयाम से मिलकर बना होता है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है - शरीर में ऊर्जा लाने वाली शक्ति देना। प्राणायाम एक विधि है, यह एक साधना है जिसमें सांस को एक विशेष प्रकार से अंदर खींचा जाता है और बाहर छोड़ा जाता है। इसके करने से कई शारीरिक स्वास्थ्य लाभ होते है। प्राणायाम करने के दौरान कई बातों का ध्यान भी रखना चाहिए। सूर्योदय के समय इसे करने से सबसे ज्यादा लाभ मिलता है और इसे सही प्रकार से करना चाहिए। आप चाहें तो प्राणायाम सीखने के लिए किसी योगा सेंटर या प्रोफेशनल ट्रेनर की मदद ले सकते हैं। प्राणायाम के स्वास्थ्य लाभ निम्म प्रकार हैं :
1)फेफड़े को लाभ
प्राणायाम करने के कई स्वास्थ्य लाभ होते है। इसका सबसे बड़ा स्वास्थ्य लाभ यह होता है कि इसे करने से फेफडों को आराम मिलता है। यह उन लोगों के लिए सबसे लाभदायक होता है जिन्हे अस्थमा या सांस सम्बंधी समस्या होती है।
2) वजन कम होता है
प्राणायाम करने से बाहर निकला हुआ पेट अंदर हो जाता है और वजन घटाने में
आराम मिलता है। अगर आप इसे नियमित रूप से करें तो आपको अपने वजन में फर्क
अवश्य महसूस होगा।
3)डिटॉक्सीफिकेश
प्राणायाम एक ऐसा तरीका होता है जिसके माध्यम से हम शरीर से कई
विषैले तत्वों को बाहर निकाल सकते है। इसे नियमित रूप से करने से शरीर में
डिटॉक्सीफिकेशन की प्रक्रिया होती है। यह सभी उम्र के लोगों के लिए
लाभकारी होता है।
4) डिप्रेशन की अवस्था से बाहर निकलने में आराम मिलता है
प्राणायाम करने से मानसिक रूप से दृढता आती है और व्यक्ति को
डिप्रेशन की अवस्था से बाहर निकलने में आराम मिलता है। नियमित रूप से
प्राणायाम करने से डिप्रेशन और तनाव में आराम मिलता है। आप पढ़ाई करने के
बाद हुई थकान को भी प्राणायाम से दूर भगा सकते है|
5)नाक साफ रहती है
जिन लोगों को हर समय सर्दी और जुकाम की समस्या रहती है और उनकी नाक
बहती रहती है, ऐसे ग्रसित लोगों को प्राणायाम अवश्य करना चाहिए, इससे उनकी
नाक के रास्ते साफ रहते है और जुकाम आदि में भी आराम मिलता है।
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